#Sanju #Review
क्यों देखनी चाहिए?
1. इस फ़िल्म में वो सभी सीख हैं, जो एक इंसान को इंसान बनाती है। फ़िल्म और संजय दत्त की कहानी इस बात को सच करती है कि जब जागो तब सवेरा। संजू की कहानी इच्छाशक्ति की एक तगड़ी मिशाल है कि आदमी अगर खुद से ठान ले तो वो हर मुकाम पा सकता है। वरना सेक्स और ड्रग का आदि महज किसी दवा के दम पर मुन्ना भाई नहीं बन सकता था।
2. ये फ़िल्म एक निस्वार्थ दोस्ती को भी दिखाती है, जहाँ इफ एंड बट के जैसा कोई टर्म्स एंड कंडीशन नहीं होता। जो है, जैसा है, उसे उसी तरह अपनाओ। दोस्त में बुराई है तो उसे दूर करने की जिम्मेवारी भी एक दोस्त की ही होती है। विक्की कौशल का अभिनय आपको सच्ची दोस्ती निभाने को प्रेरित करेगा।
3. पूरी फ़िल्म आपको अपने जीवन में टाइगर की तरह जीना सिखाती है। चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों ना आ जाये, दो कदम पीछे हटकर, और लपककर हमला करने वाले को ही शेर कहते है।
4. हमने एक कहावत सुनी है कि जब बाप का जूता बेटे को होने लग जाये, तो बाप को बेटे का दोस्त बन जाना चाहिए। संजय दत्त और सुनील दत्त की कहानी बाप बेटे की कम और दो दोस्तों की कहानी ज्यादा लगती है।
5. फ़िल्म किस्मत के खेल को अच्छे से दिखाती है। कैसे वक़्त और हालात हमारे अपने हाथ में नहीं होता है। वरना संजू की पहली फ़िल्म रॉकी के प्रीमियर से तीन दिन पहले उसकी माँ इस दुनिया को विदा नहीं कहती। नरगीश के किरदार में मनीषा कोइराला ने अपने सिनेमाई अनुभव का अच्छा प्रदर्शन किया है।
6. फ़िल्म बतलाती है कि आप कितनी भी बुराइयों से क्यों ना घिरे हो, यदि जीवन में आपके एक सच्चे जीवनसाथी की कमी नहीं है, तो आप बेशक हर मैदान फतह कर सकते हैं। सालों बाद दिया मिर्जा का बॉलीवुड कम बैक दर्शकों को जरूर भायेगा।
7. सुख के सब साथी, दुःख में ना कोई। इस बात को संजय दत्त और उनके पिता सुनील दत्त ने अपने जीवन में सच होते देखा है, कि कैसे दुःख के बादल आने पर हर मतलबी अपना असली चेहरा दिखाता है। फ़िल्म इस बात को सच करती है कि बाप एक वृक्ष की तरह होता है, जो खुद हर कष्ट सह कर अपने बेटे को अच्छे से अच्छा जीवन देना चाहता है। परेश रावल ने स्वर्गीय सुनील दत्त के जीवनी के साथ न्याय किया है।
8. फ़िल्म मीडिया जगत पर एक जोरदार हमला करती है। कैसे आज हम ब्रेकिंग न्यूज़ से इतना घिर चुके हैं, जो हमें खबर कम और तोड़ती ज्यादा है। मीडिया के गैर जिम्मेवार हरकत को फ़िल्म अच्छे से दर्शाती है। फ़िल्म बताती है कि हमेशा वह ही सच नहीं होता जो दिखता है। कुछ चीज़ें हमें जबरदस्ती दिखाई जाती है। और झूठ को सौ दफा चिल्ला चिल्ला कर कहा जाए तो सफेद झूठ नंगा सच बन जाता है।
9. कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना। बात सही है। हम सभी का मुँह तो नहीं बंद कर सकते हैं, मगर अपने कर्म से लोगों को खामोश जरूर कर सकते हैं। संजय दत्त की कहानी इस बात की बानगी है।
10. जैसा कि फ़िल्म का पोस्टर कहता है कि, "वन मैन मेनी लाइव्स"। फ़िल्म इस बात में बिल्कुल सफल होती दिखती है। तीन घन्टे में एक 59 साल के इंसान की कॉन्ट्रोवर्शियल लाइफ को बखूबी वहीं डायरेक्टर दिखा सकता है, जो खुद बहुत खूब हो। फ़िल्म में संजू का किरदार निभाते रणबीर कपूर ने संजय दत्त दिखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
11. फ़िल्म देखने वाली है। जरूर देखें, मगर कृपया सिनेमा हॉल में जाकर ही देखें। पायरेसी को बढ़ावा ना दें।
#अमनकौशिक
Comments
Post a Comment