घर घर लक्ष्मी बनकर भी तू घर घर मारी जाती है
नई जिंदगी देकर भी तेरी जिंदगी छीन ली जाती है
कबतक यूँही ऐसे ऐसे अत्याचार सहोगी खुदपर
कबतक यूँही बंधनों में बंधकर बोझ बनोगी खुदपर
सती से लेकर पर्दा तक का ठिकरा तुझपर फोड़ा गया
मर्द जात के मतलबों से तुझे जैसे चाहे मोड़ा गया
हाथें तेरी बस चूड़ी और कंगन की मोहताज नहीं
बस अब केवल शस्त्र उठाओ, किसी पर अब विश्वास नहीं
रक्तरंजित कर इस धरा को बूंद बूंद रक्तपान करो
अब भले आ जाये कोई शंकर भोले, रणचंडी बन अब उद्धार करो
#अमनकौशिक
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